ईश्वर तथा परम सत्य की अवधारणा
* ध्यान दें - इस वार्तालाप के लिए प्रश्न पूछने की सुविधा अंत में उपलब्ध है ।
ईश्वर की अवधारणा तथा परम सत्य की अवधारणा समान स्तर पर नही है। श्री मद भागवतम परम सत्य के लक्ष्य पर निशाना साधता है। ईश्वर की अवधारणा नियंता का संकेत करती है, जबकि परम सत्य की अवधारणा आश्रय तत्व या समस्त शक्तियों के सर्वोच्च स्त्रोत की घोटक है। नियंता के रूप में श्री भगवान का साकार स्वरूप होने में कोई मतभेद नही है, क्योंकि नियंता निराकार नही हो सकता। जैसे आधुनिक सरकार, विशेष रूप से प्रजातांत्रिक सरकार कुछ सीमा तक निराकार है लेकिन अंतत: मुख्य प्रशासनाद्यक्ष तो व्यक्ति ही होता है और सरकार का निराकार पक्ष उसके व्यक्तिगत स्वरूप के अधीन होता है। अतः जब भी हम दूसरों के ऊपर नियंत्रण रखने की बात करते हैं तो नि:संदेह हमें साकार स्वरूप के अस्तित्व को स्वीकार करना पड़ता है।
चूँकि विभिन्न व्यवस्थापक पदों के लिए भिन्न-भिन्न नियंता होते हैं अतएव छोटे छोटे देवता अनेक हो सकते हैं। श्री मद भगवद गीता के अनुसार कोई भी ऐसा नियंता जिसके पास कुछ विशिष्ठ आलौकिक शक्तियाँ होती हैं वह विभूतिमं सत्त्व या श्री भगवान द्वारा शक्ति संचारित किया गया नियंता कहलाता है। ऐसे अनेक विभूतिमं सत्त्व अर्थात विभिन्न विशिष्ठ शक्तियों से युक्त नियंता अथवा ईश्वर होते हैं, किंतु परम सत्य एक ऐसा सत्त्व है जो अद्वितीय है। यह श्री मदभागवतम इस अंतिम सत्य अथवा आश्रय तत्त्व का निर्देश परम सत्यम के रूप में करता है।
चूँकि विभिन्न व्यवस्थापक पदों के लिए भिन्न-भिन्न नियंता होते हैं अतएव छोटे छोटे देवता अनेक हो सकते हैं। श्री मद भगवद गीता के अनुसार कोई भी ऐसा नियंता जिसके पास कुछ विशिष्ठ आलौकिक शक्तियाँ होती हैं वह विभूतिमं सत्त्व या श्री भगवान द्वारा शक्ति संचारित किया गया नियंता कहलाता है। ऐसे अनेक विभूतिमं सत्त्व अर्थात विभिन्न विशिष्ठ शक्तियों से युक्त नियंता अथवा ईश्वर होते हैं, किंतु परम सत्य एक ऐसा सत्त्व है जो अद्वितीय है। यह श्री मदभागवतम इस अंतिम सत्य अथवा आश्रय तत्त्व का निर्देश परम सत्यम के रूप में करता है।
“दिव्य पुरूषोत्म भगवान अप्रत्यक्ष रूप से भौतिक प्रकृति के तीनों गुणों यथा सत्त्व, रजो तथा तमों से सम्बंधित हैं। केवल भौतिक जगत की सृष्टि, पालन तथा संहार के लिए वे ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के तीन गुणावतार ग्रहण करते हैं ”
श्री मद भागवतम के रचियता श्रील व्यासदेव सर्वप्रथम परम सत्यम को सादर प्रणाम करते हैं और चूँकि परम सत्यम समस्त शक्तियों के सर्वोच्च स्त्रोत हैं, अतएव परम सत्यम परम पुरुष हैं। देवगण या नियंता नि:संदेह व्यक्ति हैं लेकिन परम सत्यम जिनसे समस्त देवगण नियंत्रण की शक्ति प्राप्त करते हैं, वे परम पुरुष हैं। संस्कृत शब्द ईश्वर नियंता का सूचक है, लेकिन परम पुरुष परमेश्वर अर्थात सर्वोपरि ईश्वर है। ये परमेश्वर अर्थात सर्वोपरि व्यक्ति परम चैतन्य युक्त पुरुष है और चूँकि वह अन्य किसी स्त्रोत से शक्ति प्राप्त नही करते अतएव वे नितांत स्वतंत्र हैं।
सवाल - जवाब
Q। क्या सत्य को भगवान से अलग करके देखा जा सकता है?
A। समझ या कहें कि बुद्धि कि दृष्टि से सत्य को भगवान से भिन्न समझा जा सकता है किंतु शायद अनुभव के तौर पर इनमे अर्थात सत्य और भगवान (या अन्य कोई भी टर्म) में कोई अंतर नही है।
Q। क्या सत्य का दूसरा पहलू असत्य या झूठ है?
A। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अन्य धारणाओं के दूसरे पहलुओं जैसे कि सही का ग़लत, वास्तविक का अवास्तविक, सच का झूठ तथा सत्य के दूसरे पहलू जिसे की मिथ्या के द्वारा समझा जाता है ; पर विचार किया जा सकता है ।
Q। सत्य क्या है?
A। सत्य एक अद्वितीय व पूर्ण स्रोत है । एक ऐसा स्त्रोत जिस पर सृष्टि में उपस्थित सारे अस्तित्व अपनी मौजूदगी को बनाए रखने के लिए निर्भर होते हैं किंतु यह स्त्रोत किसी पर निर्भर नही होता । सत्य अपनेआप में पूर्णरूपेण स्वतंत्रत स्त्रोत है ।
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