बचपन का किस्सा है।
ये बात है स्कूल के मेरे एक दोस्त की। जब भी मैं उसकी गणित की कॉपी देखता था तो ऐसा लगता था कि यार किसी की राइटिंग इतनी सुन्दर कैसे हो सकती है, क्योंकि हिंदी या इंग्लिश की कापी में तो राइटिंग का कांसेप्ट थोड़ा समझा जा सकता है पर गणित की कॉपी में राइटिंग की बात थोड़ी अलग सी लगती है।
जनरली गणित की कॉपी को देख कर बुद्धि की बात या स्मार्टनेस की बात या होशियार होने की बात की जाती है पर पता नहीं मेरा ध्यान इन सब बातों पर ना जा कर मेरे उस दोस्त की राइटिंग पर जाता था। हालाँकि में उस दोस्त की बात कर रहा हूँ जिसके बराबर ना तो तब लायक था और ना ही शायद आज हूँ। वो तो बहुत गंभीर, शांत और सबसे बड़ी बात को हालातों को समझता था उस समय मलतब आज से कोई 18-20 साल पहले।
जनरली गणित की कॉपी को देख कर बुद्धि की बात या स्मार्टनेस की बात या होशियार होने की बात की जाती है पर पता नहीं मेरा ध्यान इन सब बातों पर ना जा कर मेरे उस दोस्त की राइटिंग पर जाता था। हालाँकि में उस दोस्त की बात कर रहा हूँ जिसके बराबर ना तो तब लायक था और ना ही शायद आज हूँ। वो तो बहुत गंभीर, शांत और सबसे बड़ी बात को हालातों को समझता था उस समय मलतब आज से कोई 18-20 साल पहले।
तरुण सिंह अपना क्रीएटिव दोस्त !
हमारे उस दोस्त का नाम है तरुण सिंह। जैसा मुझे याद है वो बचपन में बहुत ही सरल, सीधा और जैसी की मेरी अनुभूति है वो स्वाभिमानी था और इस बात को मैं इतने यकीन से इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि मुझे वो स्थिति याद हैं जब मेरा घर बहुत छोटा सा, टुटा सा था और ऐसी ही कुछ स्थिति या थोड़ी बहुत ही अलग उसके घर की भी होगी तब उस समय मुझे अपने दोस्तों को घर पर बुलाने में शर्म आती थी पर तरुण बड़े चाव से दोस्तों को घर बुलाता था, खूब आवा जावी होती थी और जन्मदिन भी मनाता था खूब सारे दोस्त मजे करते थे उसके उसी घर पर।
इसलिए मेरी अनुभूति है की वो स्वाभिमानी है क्योंकि उसका अभिमान अपने आप पर था मेरी तरह घर बार पर नहीं। हालाँकि आज तो वो बहुत समृद्ध है, पता है मुंबई में खुद का घर, गाड़ी, खुद की कंपनी सब कुछ है , अच्छा परिवार और सोशल स्टेटस भी और मैं तो आज भी वैसा ही हूँ ना खुद का घर, ना गाड़ी और ना और कुछ पर मेरी छोड़ो मैं इम्पोर्टेन्ट नहीं हूँ पर हां दोस्त इम्पॉर्टन्ट रखता हूँ। हाहाहा। और तरुण के पास ये सब होने का एक कारण जो मुझे लगता है वो है उसने एस ज़िंदगी में अपने सारे निर्णेय ख़ुद के स्वाभिमान तथा स्वविवेक से लिये है और हाँ मुझे ये भी लगता है कि चरित्रवान के गुण के बारे में उससे सम्बंधित करके बात भी की जा सकती है। |
दिल से हाथ तक की यात्रा...
तो हुआ क्या 2004 की बात है 12 वी के रिजल्ट आ जाये और जैसा की ट्रेंड था मैथ साइंस वाले घर से बहार पढ़ने जाते थे और इंजीनियरिंग करते थे पर तरुण को पता नहीं क्या तो सुझा और वो तो मुंबई चला गया और आर्किटेक्ट का कोर्स में एडमिशन ले लिया उस समय हम सब तो बहुत हैरान थे क्योंकि उसने बिलकुल ट्रेंड से हट कर डिसिशन लिया था कुछ के पेरेंट्स तो उसके इस व्यवहार को समझ भी नहीं पाए और शायद सोच रहे थे की आर्चीटेच नाम की कुछ चीज भी होती है क्या।
उस समय तो में भी नहीं समझ पाया पर अब थोड़ा थोड़ा समझने लगा हूँ और मुझे लगता है शायद तरुण बहुत कॉन्ससियस था और उसको समझ आ गया होगा कि जो उसके दिल की जो खाव्हिस है उसका हुन्नर उसके ही हाथ में है और वो है पेंसिल और पेपर। मुझे बहुत नाज है मेरे दोस्त पर क्योंकि उसने दिल से हाथ तक की जर्नी को पहचाना और लाइफ टाइम क्या कर्मा किया जा सकता है वो पकड़ा। मेरी तरह नहीं जिसे पता ही नहीं है किस काम के लिए बना हूँ और ऐसा क्या काम है जिसे जिंदगी भर ख़ुशी ख़ुशी कर पाऊँ।
उस समय तो में भी नहीं समझ पाया पर अब थोड़ा थोड़ा समझने लगा हूँ और मुझे लगता है शायद तरुण बहुत कॉन्ससियस था और उसको समझ आ गया होगा कि जो उसके दिल की जो खाव्हिस है उसका हुन्नर उसके ही हाथ में है और वो है पेंसिल और पेपर। मुझे बहुत नाज है मेरे दोस्त पर क्योंकि उसने दिल से हाथ तक की जर्नी को पहचाना और लाइफ टाइम क्या कर्मा किया जा सकता है वो पकड़ा। मेरी तरह नहीं जिसे पता ही नहीं है किस काम के लिए बना हूँ और ऐसा क्या काम है जिसे जिंदगी भर ख़ुशी ख़ुशी कर पाऊँ।
स्पार्किंग क्रीएटिविटी
आज जब मैंने उसकी कंपनी की वेबसाइट पर उसका काम देखा तो पता है सबसे पहले मेरा मन उन स्कूल के दिनों में गया फिर स्कूल के उस क्लासरूम और उसके घर पर जहाँ में उसकी मैथमेटिक्स की कॉपी को देख कर उसकी राइटिंग के लिए आश्चर्य करता था और सोचता था की किसी की मैथ की राइटिंग इतनी अच्छी कैसे हो सकती है तथा इसके बाद मेरा मन यहाँ टोक्यो की उन ऊंची-ऊंची इमारतों पर गया जो बहुत विशाल तथा ग्रैंड हैं और उसके बाद मेरा मन गणित के उन ज्ञान की तरफ गया जो हर एक छोटी से छोटी और आसमान को छूती हुई इमारत के पीछे गया जो हर एक निर्माण का मूल आधार होता है और वो है उचाई x लम्बाई x चौड़ाई।
इस सब जगहों पर जाने के बाद और बचपन से आज तक के सारे डॉट्स कनेक्ट करने के बाद एक बहुत ही सुन्दर सा अनुभव मेरे मन में मुझे कराया कि अब में तरुण की गणित की कॉपी में लिखे नंबर में तरुण की क्रिएटिविटी देख रहा था, जहाँ नम्वर 1 में इमारत का आधार और स्ट्रक्चर वहीँ 9 नंबर में भव्य ईमारत का अर्च था उसी कॉपी के 7 नंबर में दीवारों के कोने और 5 में छत और इन नंबरों की राइटिंग में छुपी डिज़ाइन और आर्किटेक्चर तथा मेज़रमेंट। इसके बाद मन फिर से वेबसाइट पर आया और फिर मेरे मन ने जी भर कर उसके काम को देखा और बहुत खुश हुआ।
लिविंग विद एनर्जी
अभी उसकी स्टोरी लिखते वक़्त भी मेरी आखें कुछ नम सी हैं और मुझे लग रहा है कि तरुण में कुछ तो अलग है और भी कई सारे लोग हैं उनकी यादें हैं पर उसकी इमेज जब माइंड में आ रही है तो दिल तक का सफर करा रही है। बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो दिल तक पहुँच रखते हैं क्योंकि अधिकतर चेहरे मन की सतह पर ही घूम फिर कर रह जाते हैं।
मुझे एक एहसास इस पल ये भी हो रहा मेरे दोस्त तरुण की वजह से कि सही रिश्ते पर और ईमानदारी से जिंदगी जीना थोड़ा कठिन जरूर है कुछ ऐसे ही चंद लोग हैं जिनकी वजह से करोड़ों लोगों को अपने दिल के होने का एहसास हो पाता है। आज तरुण अपने पैशन को फॉलो कर रहा है अच्छी तरह से लोगों के जीवन में खुद का घर होने तथा बनाने में योगदान दे रहा है और मेरी यही दुआ है कि जिस तरह उसकी मैथमेटिक्स की राइटिंग का कांसेप्ट आज में पहचान पाया हूँ जबकि इंडिकेशन तो मुझे खूब साल पहले मिला था ऐसा अब ना हो। उसकी दो बहुत सुंदर और चुलबुली जुड़वाँ बेबी है और मुझे भरोषा है जैसे तरुण ने बचपन में ही अपने अस्तित्व को पहचान लिया था वैसे ही वो अपनी बच्चियों की एक्टिविटी से उन्ही रियल पहचान करने में मदद करें और उन्हें उनका कर्मा निर्धारित करने में उनका हमेशा साथ दे जैसे तरुण के माता पिता ने दिया है। |
It is necessary to have the acceptance for diversity to maximize the perception so that creativity can be sparked.