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मोह के प्रभाव को लाँघना

भरत का वंश
मोह के प्रभाव को लाँघना
हे महाराज परीक्षित! चूँकि राजा रंतिदेव शुद्ध भक्त थे, सदैव कृष्ण भावना भावित तथा पूर्ण रूपेन निष्काम थे, अतएव  श्री भगवान की माया उनके समक्ष प्रकट नही हो सकी। विपरीत इसके, माया स्वप्न की तरह पूर्ण रूपेन नष्ट हो गयी। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश में अंधकार की कोई सम्भावना नही रहती, उसी प्रकार शुद्ध कृष्ण भक्त में माया का अस्तित्व नही रह पता। श्री भगवान स्वयं श्रीमद् भगवद् गीता में कहते हैं :

​“भौतिक प्रकृति
के तीन गुणों वाली मेरी इस देवी शक्ति को जीत पाना कठिन है। किंतु जिन्होंने मेरी शरण ग्रहण कर ली है, वे इसे सरलता से पार कर सकते हैं।” जो कोई भ्रामक शक्ति अर्थात माया के प्रभाव से मुक्त होना चाहता है, उसे कृष्ण भक्त बन कर भगवान श्री कृष्ण को सदैव अपने ह्रदय में धारण करना चाहिए।
जीवन   →
जिंदगी से जुड़े सारे सवालों, शंकाओं तथा इंसानों के जीवन के सारे पहलुओं का आध्यात्मिक ज्ञान यहाँ उपलब्ध है।
जीवन का परिचय
​अनन्त ब्रह्मांड में श्री भगवान द्वारा रची गयीं सर्व श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है जीवनPicture
श्रीमद् भगवद् गीता में श्री भगवान उपदेश देते हैं कि मनुष्य सदैव उनका चिंतन करें। इस प्रकार सदा कृष्ण भावना भावित रहते हुए मनुष्य माया के प्रभाव को पार कर सकता है चूँकि रंतिदेव कृष्ण भावना भावित थे, अतएव वे माया के वशीभूत नही थे। इस प्रसंग में स्वप्नवत शब्द महत्वपूर्ण है।

चूँकि भौतिक जगत में मन भौतिक कार्यों में मग्न रहता है अतएव सो जाने पर स्वप्न में बहुत से विपरीत कार्य दिखते हैं। किंतु जब मनुष्य जागता है तो ये समस्त कार्य मन में समा जाते हैं। इसी प्रकार जब तक मनुष्य भौतिक शक्ति माया के वश में रहता है, तब तक वह नाना प्रकार की योजनाएँ एवं कार्यक्रम बनाता है किंतु कृष्ण भावना भावित होने पर स्वप्न जैसी ये योजनाएँ स्वतः दूर हो जाती हैं।
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सत्य क्या है?
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