GSW
  • जीवन
  • 0 अध्यात्म
  • आध्यात्मिक ज्ञान
  • Contact
  • Spiritual Definitions

शुद्ध चेतना के लक्षण

शुद्ध चेतना के लक्षण
महत् तत्व के प्रकट होने के पश्चात ये वृत्तियाँ एक साथ प्रकट होती है । जिस प्रकार जल पृथ्वी के संसर्ग में आने के पूर्व अपनी स्वाभाविक अवस्था में स्वच्छ, मीठा, तथा शांत रहता है, उसी प्रकार विशुद्ध चेतना के विशिष्ठ लक्षण पूर्ण शांतत्व, स्वच्छता, तथा अविकारिकत्व है। 

प्रारम्भ में शुद्ध चेतना या कृष्ण चेतना की अवस्था ही रहती है । सृष्टि के तुरंत बाद चेतना कलुषित नहीं होती । किंतु धीरे धीरे मनुष्य भौतिक रूप से जितना अधिक कल्मषग्रस्त होता जाता है, उसकी चेतना उतनी ही मलित होती चली जाती है। शुद्ध चेतना होने पर मनुष्य पूर्ण पुरूषोत्म भगवान की किंचित झलक की अनुभूति कर सकता है । 
जिस प्रकार स्वच्छ, शांत, अशुद्धियों से रहित जल में प्रत्येक वस्तु स्पष्ट रूप से दिखती है उसी प्रकार शुद्ध चेतना में या कृष्ण चेतना में मनुष्य वस्तुओं को उनके वास्तविक रूप में देख सकता है । मनुष्य श्री भगवान की झलक भी देख सकता है और अपने अस्तित्व को भी देख सकता है । चेतना की यह अवस्था अत्यंत सुहावनी, पारदर्शी तथा शांत होती है । प्रारम्भ में चेतना शुद्ध रहती है ।
तत्वों के विश्लेषणात्मक अध्ययन के लिए भौतिक प्रकृति के मूलभूत सिद्धांत के कंटेंट्स   ←   →
←   प्रीवियस
श्री भगवान भौतिक प्रकृति में गर्भाधान करते हैं
​काल पच्चीसवाँ तत्व है
नेक्स्ट   →
भगवान अनिरुद्ध मन के रूप में प्रसिद्ध
बुद्धि के लक्षण
​GSW  >  आध्यात्मिक जीवन  > आध्यात्मिक ज्ञान  >  “यथा स्थिति”  >  “यथा स्थिति”  भाग 2   >  भौतिक प्रकृति के मूलभूत सिद्धांत  > ​काल पच्चीसवाँ तत्व है
Powered by Create your own unique website with customizable templates.
  • जीवन
  • 0 अध्यात्म
  • आध्यात्मिक ज्ञान
  • Contact
  • Spiritual Definitions