शब्द तत्व का निरूपण
जो लोग विद्वान हैं और वास्तविक ज्ञान से युक्त हैं वे शब्द की परिभाषा एस प्रकार करते हैं अर्थात वह जो किसी पदार्थ के विचार (अर्थ) को वहन करता है, हमारे देखने में ना आ रहे किसी वक़्ता की उपस्थिति को सूचित करता है और आकाश का सूक्ष्म रूप होता है।
यहाँ यह अत्यंत स्पष्ट है ज्यों ही हम सुनने (शब्द ) बात करते हैं तो उस हेतु एक वक़्ता होना चाहिए, वक़्ता के बिना सुनने का प्रश्न ही नही उठता। अतः वैदिक ज्ञान जिसे श्रुति कहते हैं अर्थात जो सुन कर ग्रहण किया जाता है, अपौरुषेय भी कहलाता है। अपौरुषेय का अर्थ है “जो भौतिक रूप से उत्पन्न किसी व्यक्ति द्वारा ना कहा गया हो।
यहाँ यह अत्यंत स्पष्ट है ज्यों ही हम सुनने (शब्द ) बात करते हैं तो उस हेतु एक वक़्ता होना चाहिए, वक़्ता के बिना सुनने का प्रश्न ही नही उठता। अतः वैदिक ज्ञान जिसे श्रुति कहते हैं अर्थात जो सुन कर ग्रहण किया जाता है, अपौरुषेय भी कहलाता है। अपौरुषेय का अर्थ है “जो भौतिक रूप से उत्पन्न किसी व्यक्ति द्वारा ना कहा गया हो।
श्री मद भागवतम के प्रारम्भ में ही कहा गया है: ब्रह्म का शब्द या वेद सर्वप्रथम मूल विद्वान पुरुष ब्रह्मा के ह्रदय में स्थापित किया गया। वे किस प्रकार विद्वान बने? जब भी कोई विधा होती है तो उसका वक़्ता होना चाहिए और सुनने की क्रिया होनी चाहिए। किंतु ब्रह्मा को प्रथम सृजित जीव थे। उनसे किसने कहा? जब कोई ना था तो उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरु कौन था? चूँकि वे ही एकमात्र जीवंत प्राणी थे इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में परमात्मा रूप में स्थित पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान ने यह ज्ञान उनके भीतर प्रदान किया। वैदिक ज्ञान परमेश्वर द्वारा कहा गया समझा जाता है, फलतः यह भौतिक ज्ञान के दोषों से मुक्त है भौतिक ज्ञान दोष पूर्ण होता है।
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जिंदगी से जुड़े सारे सवालों, शंकाओं तथा इंसानों के जीवन के सारे पहलुओं का आध्यात्मिक ज्ञान यहाँ उपलब्ध है।
जिंदगी से जुड़े सारे सवालों, शंकाओं तथा इंसानों के जीवन के सारे पहलुओं का आध्यात्मिक ज्ञान यहाँ उपलब्ध है।
यदि हम बद्ध जीव से कुछ सुनते हैं तो वह दोषों से ग्रस्त रहता है। सारी भौतिक तथा सांसारिक जानकारियाँ मोह, त्रुटि, धोखे तथा इंद्रियों की अपूर्णता से दूषित हैं। चूँकि वैदिक ज्ञान उन परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया है, जो इस भौतिक जगत से परे हैं; इसलिए वह पूर्ण है। यदि हम ब्रह्मा की गुरु शिष्य परम्परा से वैदिक ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो हमें पूर्ण ज्ञान मिलता है।
सुने जाने वाले प्रत्येक शब्द का अर्थ होता है। ज्यों इ हम जल शब्द सुनते हैं, तो उसके पीछे एक पदार्थ जल रहता है। इसी प्रकार जब हम ईश्वर शब्द सुनते हैं, तो उसका एक अर्थ होता है। यदि हम ईश्वर शब्द के अर्थ तथा व्याख्या को स्वम ईश्वर से प्राप्त करते हैं तो वह पूर्ण होता है। किंतु यदि हम ईश्वर के विषय में तर्क-वितर्क करते हैं तो वह अपूर्ण होता है।
सुने जाने वाले प्रत्येक शब्द का अर्थ होता है। ज्यों इ हम जल शब्द सुनते हैं, तो उसके पीछे एक पदार्थ जल रहता है। इसी प्रकार जब हम ईश्वर शब्द सुनते हैं, तो उसका एक अर्थ होता है। यदि हम ईश्वर शब्द के अर्थ तथा व्याख्या को स्वम ईश्वर से प्राप्त करते हैं तो वह पूर्ण होता है। किंतु यदि हम ईश्वर के विषय में तर्क-वितर्क करते हैं तो वह अपूर्ण होता है।
श्री मद भगवद गीता भगवान का विज्ञान है जिसे स्वम श्री भगवान ने कहा है। यह पूर्ण ज्ञान है। मानसिक तर्कवादी या तथाकथित दार्शनिक जो यह अन्वेषण करते रहते हैं कि वास्तव में ईश्वर क्या है, वे ईश्वर को कभी नही समझ पाएँगें। श्री भगवान के विज्ञान को ब्रह्मा से चली आ रही गुरु-शिष्य परम्परा से ग्रहण करना होता है। ब्रह्मा को यह ज्ञान स्वम श्री भगवान ने प्रदान किया था हम गुरु-शिष्य परम्परा के अंतर्गत अधिकरत व्यक्ति से श्री मद भगवद गीता सुनकर श्री भगवान के ज्ञान को समझ सकते हैं।
जब हम देखने की बात करते हैं, तो उसका स्वरूप भी होना चाहिए। हमरु इन्द्रिय अनुभूति का प्रारम्भिक अनुभव आकाश है। आकाश ही रूप का प्रारम्भ है। आकाश से अन्य रूप उद्भूत होते हैं। अतः आकाश से विषयों तथा इन्द्रिय अनुभूति का शुभ आरम्भ होता है।
जब हम देखने की बात करते हैं, तो उसका स्वरूप भी होना चाहिए। हमरु इन्द्रिय अनुभूति का प्रारम्भिक अनुभव आकाश है। आकाश ही रूप का प्रारम्भ है। आकाश से अन्य रूप उद्भूत होते हैं। अतः आकाश से विषयों तथा इन्द्रिय अनुभूति का शुभ आरम्भ होता है।
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