संचित तत्वों का नाम ही प्रधान है
पाँच स्थूल तत्व, पाँच सूक्ष्म तत्व, चार आंतरिक इंद्रियाँ, पाँच ज्ञानेंद्रियाँ तथा पाँच कर्मेंद्रियाँ - इन चोबीस तत्वों का यह समूह प्रधान कहलाता है। श्री मद भागवद गीता के अनुसार यहाँ पर वर्णित चोबीस तत्वों का समूह योनिर्महद् ब्रह्म कहलाता है ।
समस्त जीवों का गर्वाधान इसी योनिर्महद् ब्रह्म में किया जाता है और वे विभिन्न रूपों में - ब्रह्म से लेकर क्षुद्र चींटी तक में - उत्पन्न होते हैं । श्री मद भागवतम तथा अन्य वैदिक ग्रंथों में भी चोबीस तत्वों का यह समूह प्रधान योनिर्महद् ब्रह्म के रूप में वर्णित है ; यह समस्त जीवों के जन्म तथा पालन का स्त्रोत है।
समस्त जीवों का गर्वाधान इसी योनिर्महद् ब्रह्म में किया जाता है और वे विभिन्न रूपों में - ब्रह्म से लेकर क्षुद्र चींटी तक में - उत्पन्न होते हैं । श्री मद भागवतम तथा अन्य वैदिक ग्रंथों में भी चोबीस तत्वों का यह समूह प्रधान योनिर्महद् ब्रह्म के रूप में वर्णित है ; यह समस्त जीवों के जन्म तथा पालन का स्त्रोत है।
पाँच स्थूल तत्वों के नाम है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश । सूक्ष्म तत्व भी पाँच हैं - गंध, स्वाद, रंग, स्पर्श तथा शब्द (ध्वनि)। ज्ञानेंद्रियाँ तथा कर्मेंद्रियों को मिला कर इनकी संख्या दस है । ये हैं श्रवणेन्द्रिय, स्वादेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय, दृश्य इन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, वागेंद्रिय , कार्य करने की इंद्रियाँ, चलने की इंद्रियाँ, जननेन्द्रिय तथा मल त्याग की इंद्रियाँ ।
आंतरिक सूक्ष्म इंद्रियाँ मन, बुद्धि, अहंकार, तथा कलुषित चेतना के रूप में चार प्रकार की जानी जाती हैं । उनके विभिन्न कार्यों के अनुसार ही इनमे भेद किया जा सकता है, क्योंकि ये विभिन्न लक्षणों को बताने वाली होती हैं ।
चार आंतरिक या सूक्ष्म इंद्रियाँ जिनका यहाँ वर्णन हुआ है वे अपने विभिन्न लक्षणों से परिभाषित की जाती है । जब शुद्ध चेतना भौतिक कल्मष से दूषित हो जाती है और देहात्म बुद्धि प्रधान हो जाती है तो कहा जाता है कि मनुष्य मिथ्या अहंकार के वशीभूत है । चेतना आत्मा का कर्म है, अतः चेतना के पीछे आत्मा रहता है । भौतिक कल्मष से दूषित चेतना अहंकार कहलाती है।
चार आंतरिक या सूक्ष्म इंद्रियाँ जिनका यहाँ वर्णन हुआ है वे अपने विभिन्न लक्षणों से परिभाषित की जाती है । जब शुद्ध चेतना भौतिक कल्मष से दूषित हो जाती है और देहात्म बुद्धि प्रधान हो जाती है तो कहा जाता है कि मनुष्य मिथ्या अहंकार के वशीभूत है । चेतना आत्मा का कर्म है, अतः चेतना के पीछे आत्मा रहता है । भौतिक कल्मष से दूषित चेतना अहंकार कहलाती है।
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