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समदर्शी भगवान

कुशल चिंतक द्वारा श्री भगवान की उपस्थिति का अनुभव किया जाना​

कुशल चिंतक द्वारा श्री भगवान की उपस्थिति का अनुभव किया जाना​
* ध्यान दें - इस ​वार्तालाप के लिए प्रश्न पूछने की सुविधा अंत में उपलब्ध है ।

सर्वव्यापी श्री भगवान प्रत्येक के ह्रदय में स्थित रहते हैं और एक कुशल चिंतक ही अनुभव कर सकता है कि वे बृहत् या न्यून मात्रा में वहाँ कैसे उपस्थित हैं । जिस प्रकार काष्ठ में अग्नि, जलपात्र में जल या घड़े के अंदर आकाश को समझा जा सकता है, उसी प्रकार जीव की भक्तिमयी क्रियाओं को देख कर यह समझा जा सकता है कि वह जीव असुर है या देवता । विचारवान व्यक्ति किसी मनुष्य के कर्मों को देख कर यह समझ सकता है कि उस मनुष्य पर श्री भगवान की कितनी कृपा है ।
“यह जान लो कि समस्त सुंदर, यशस्वी तथा बलशाली सृष्टियाँ मेरे तेज़ के केवल एक स्फुल्लिंग से उत्पन्न होती है।”​
​अनन्त ब्रह्मांड में श्री भगवान द्वारा रची गयीं सर्व श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है जीवनPicture
हमें यह व्यवहारिक अनुभव है क़ि एक व्यक्ति अद्भुत से अद्भुत कार्य कर लेता है; किंतु दूसरा व्यक्ति उन्ही कार्यों को और यहाँ तक की ऐसे कार्यों को, जिसमें थोड़े से सामान्य ज्ञान की आवश्यकता होती है, नही कर पाता। अतएव श्री भगवान ने किसी भक्त पर इतनी कृपा की है, कि वह भक्त द्वारा सम्पन्न किए गये कार्यों से ही आँका जा सकता है। 

“जो प्राणी निरंतर मेरी भक्ति करते हैं और प्रेम पूर्वक मेरी पूजा करते हैं, उन्हें में बुद्धि प्रदान करता हूँ, जिससे वे मेरे समीप आ सकते हैं।” यह अत्यंत व्यवहारिक है। शिक्षक द्वारा शिष्य को शिक्षा देना तभी सार्थक है, जब वह उन शिक्षाओं को अधिकाधिक ग्रहण करने में समर्थ हो। अन्यथा शिक्षक द्वारा शिक्षा दिए जाने पर भी वह अपनी विधा में कोई प्रगति नही कर पाता। ऐसे में पक्षपात का प्रश्न ही नही उठता। यह सूचित होता है कि भगवान श्री कृष्ण प्रत्येक को भक्तियोग प्रदान करने हेतु तैयार रहते हैं, परंतु मनुष्य को उसे ग्रहण करने में समर्थ होना चाहिए। यही रहस्य है। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति अद्भुत भक्तिमयी कार्यकलाप करता है, तो विचारक व्यक्ति समझते है कि भगवान श्री कृष्ण इस भक्त पात अधिक कृपावान हैं ।
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जीवन का परिचय

सवाल - जवाब 

Q- यहाँ पर अद्भुत कामों का सम्बंध भक्त के साथ किया गया है तो क्या भक्त वह है जो मंदिर नहीं बल्कि अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहा हैं?
A- इस संदर्भ में कर्मयोग, भगवान श्री कृष्ण द्वारा क्षत्रिय अर्जुन को कर्म का उपदेश तथा बुद्धि पर बात की जा सकती है । चूँकि यहाँ अद्भुत शब्द आया है और एक बुद्धिमान व्यक्ति ही कर्म के माध्यम से अद्भुता प्रदर्शित कर सकता है इसलिए यह समझा जा सकता है कि कर्म प्रधान व्यक्ति ही वास्तविक भक्त होता है क्योंकि भगवान की उपस्थिति बुद्धि के रूप में उसमें स्थित रहती है। 
Q- मेरा सवाल ये है कि भगवान द्वारा व्यक्ति को बुद्धि प्रदान करना तथा इसके बाद व्यक्ति का भगवन के समीप जाना, यह कैसे संभव हो पाता है?
A- आपके सवाल का अनुभव पर आधारित और प्रामाणिक जवाब अभी उपलब्ध नहीं है, पर हमे आशा है कि निकट भविष्य में यह उपलब्ध होगा।
    ​* अपना प्रश्न यहाँ पर लिखकर पूछ सकते हैं ।
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