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पौराणिक साहित्य

पुराणों के लक्षण

पुराणों के लक्षण
हे शौनक! तुम ध्यान से पुराणों के लक्षण सुनो, जिसकी परिभाषा अत्यंत प्रसिद्ध विद्वान ब्राह्मणों ने वैदिक साहित्य के अनुसार की है। हे ब्राह्मण! इस विषय के विद्वान पुराण के दस लक्षण बतलाते हैं - इस ब्रह्मांड की सृष्टि (सर्ग), तदपश्चात लोकों तथा जीवों की सृष्टि (विसर्ग), सारे जीवों का पालन-पोषण(वृत्ति), उनका भरण (रक्षा), विभिन्न मनुओं के शासन (अन्तराणि), महान राजाओं के वंश(वंश), ऐसे राजाओं के कार्यकलाप (वंशानुचरित्र), संहार (संस्था), कारण (हेतु), तथा परम आश्रय (अपाश्रय )। अन्य विद्वानों का कहना है कि महापुराणों में इन्ही दस का वर्णन रहता है, जबकि छोटे पुराणों में केवल पाँच का।
​अनन्त ब्रह्मांड में श्री भगवान द्वारा रची गयीं सर्व श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है जीवनPicture
श्रीमद् भागवतम् के द्वितीय स्कंध (२।१०।१) में भी महापुरान के दस विषयों का वर्णन हुआ है: “श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा : श्रीमद् भागवतम् में निमलिखित के विषय में दस प्रकार के कथन हैं : ब्रह्मांड की सृष्टि, उपसर्ग, ग्रह मंडल, श्री भगवान द्वारा रक्षण, सर्जनात्मक प्रेरणा, मनुओं का परिवर्तन, ईश विज्ञान, भगवद धाम को वापसी, मोक्ष तथा परम आश्रय। ”श्रील जीव गोस्वामी के अनुसार श्रीमद् भागवतम् जैसे पुराणों में इन दस विषयों का वर्णन रहता है, जबकि छोटे साहित्यों में केवल पाँच विषयों का। वैदिक साहित्य में कहा गया है :
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जीवन का परिचय
“सृष्टि, गौण सृष्टि, राजवंश, मनुओं के राज्य तथा विविध वंशों के कार्य कलाप ये पुराण के पाँच लक्षण हैं।” जिन पुराणों में पाँच प्रकार का ज्ञान रहता है, उन्हें गौण पौराणिक साहित्य कहते हैं। श्रील जीव गोस्वामी ने बताया है कि श्रीमद् भागवतम् के दस मुख्य विषय बारह स्कंधों में से प्रत्येक स्कंध में पाए जाते हैं।

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किसी एक स्कंध के लिए एक विषय को निर्धारित करने का प्रयास नही किया जाना चाहिए। न ही श्रीमद् भागवतम् की कृत्रिम विवेचना करके यह दिखाने कि प्रयास करना चाहिए कि इन विषयों का एक के बाद एक वर्णन हुआ है। सीधी सी बात यह कि ज्ञान के सारे पक्ष जो मनुष्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं और जिनका सारांश ऊपर लिखी दस श्रेणियों में दिया गया है, श्रीमद् भागवतम् में विभिन्न बल और विश्लेषण सहित सर्वत्र पाए जाते हैं।
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