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“आपमें इंद्रियों तथा उनके विषय प्रकट करने की शक्ति है”

“आपमें इंद्रियों तथा उनके विषय प्रकट करने की शक्ति है”
प्राण तथा ब्रह्मांड-सृजन के अन्य तत्व जो भी शक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं वे वास्तव में श्री भगवान की निजी शक्तियाँ है, क्योंकि प्राण तथा पदार्थ दोनो ही उनके अधीन हैं तथा उनके आश्रित हैं और एक दूसरे से भिन्न भी हैं। इस तरह इस भौतिक जगत की प्रत्येक सक्रिय वस्तु श्री भगवान द्वारा ही गतिशील बनाई जाती है।
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प्राण सामान्य वायु से, जिसका हम स्पर्श कर सकते हैं अधिक सूक्ष्म है। चूँकि प्राण इतना सूक्ष्म है - सृष्टि की किसी भी सूक्ष्म वस्तु से महीन, इसलिए इसे कभी कभी प्रत्येक वस्तु का चरम स्त्रोत मान लिया जाता है । किंतु प्राण जैसी सूक्ष्म शक्तियाँ भी अपनी कार्य क्षमता के लिए परम सूक्ष्म परमात्मा पर निर्भर करती हैं। इस श्लोक में वसुदेव पारतंत्रा अर्थात “आश्रित होने के कारण” शब्द से यही भाव व्यक्त कर रहे हैं।
​अनन्त ब्रह्मांड में श्री भगवान द्वारा रची गयीं सर्व श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है जीवनPicture
जिस तरह तीर का वेग तीर छोड़ने वाले तीरंदाज़ की शक्ति से प्राप्त होता है उसी तरह सारी परतंत्र शक्तियाँ परमेश्वर की शक्ति पर निर्भर करती हैं। यही नही विभिन्न सूक्ष्म कारण कर्म करने की शक्ति प्रदान किए जाने पर भी परमात्मा के समाँवयमात्मक निर्देश के बिना टाल मेल में कार्य नही कर सकते ।

श्री मद भागवतम के द्वितीय स्कंध में ब्रह्मा ने अपनी सृष्टि का विवरण दिया है। “हे आत्मवादियों में श्रेष्ठ श्री नारद मुनि ! शरीर का रूप तब तक प्रकट नही होता जब तक सृजित अंश यथा तत्व, इंद्रियाँ, मन तथा परकर्ति के गुण एकत्रित नही हो जाते।” अतः जब पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की शक्ति के वेग से ये सभी एकत्र हो गये तभी यह ब्रह्मांड सृष्टि के मूल तथा गौण कारणों को स्वीकार करके प्रकट हुआ।

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