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​भगवान श्री कृष्ण द्वारा अविवाहित गोपियों का चीरहरण 

​अन्यों को लाभ पहुंचाने के लिए ही जीवन

​अन्यों को लाभ पहुंचाने के लिए ही जीवन
जब सूर्य की तपन प्रखर हो गयी, तो भगवान श्री कृष्ण ने देखा की सारे वृक्ष मानों उन पर छाया करके छाते का काम कर रहे हैं। तब वे अपने ग्वाल मित्रों से इस प्रकार बोले। ​(श्री भगवान कृष्ण ने कहा) “हे स्तोककृष्ण तथा अंशु!” हे श्रीदामा, सुबल तथा अर्जुन! हे वृषभ, ओजस्वी देवप्रस्थ तथा वरूथप! ज़रा इन भाग्यशाली वृक्षों को तो देखो, जिनके जीवन पूर्ण रूप से अन्य व्यक्तियों के लाभ हेतु समर्पित हैं। वे हवा, वर्षा, धूप तथा बर्फ़ को सहते हुए भी इन तत्वों से हमारी रक्षा करते हैं।

भगवान श्री कृष्ण पाषाण हर्दयी कर्मकाण्डी ब्राह्मणों की पत्नियों पर अपनी दया दान करने की तैयारी कर रहे थे और इन श्लोकों में वह इंगित कर रहे हैं कि अन्य व्यक्तियों के कल्याण के लिए समर्पित ये वृक्ष भी उन ब्राह्मणों से श्रेष्ठ हैं जो परोपकारी नही हैं। नि: संदेह कृष्ण भावना आंदोलन के सदशयों को इस बात का गम्भीरता से अध्ययन करना चाहिए।
ज़रा देखो, कि ये वृक्ष किस प्रकार से प्रत्येक प्राणी का भरण पोषण कर रहे हैं! इनका जन्म सफल है। इनका आचरण महापुरुषों के तुल्य है क्योंकि वृक्ष से कुछ माँगने वाला व्यक्ति कभी निराश नही लौटता। ये वृक्ष अपनी पत्तियों, फूलों तथा फलों से अपनी छाया, जड़ों, छाल तथा लकड़ी से तथा अपनी सुगंध, रस, लुगदी और नये-नये कल्लों से मनुष्य की इच्छा पूर्ति करते हैं। हर प्राणी का कर्तव्य है की वह अपने प्राण, धन, बुद्धि तथा वाणी से दूसरों के लाभ हेतु कल्याण कारी कर्म करे। 
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